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सरसों की खेती : सरसों के उत्पादन बढ़ाने 10 तरीके

भारत में लगभग हर घर खाद्य तेल का इस्तेमाल होता है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और महाराष् ट्र भारत में सबसे अधिक सरसों की खेती करते हैं। सरसों की खेती में एक खास बात यह है कि यह सिंचित और असिंचित खेतों में उगाई जा सकती है। सरसों, सोयाबीन और पाम के बाद दुनिया में तीसरी सबसे महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। सरसों का तेल, सरसों के पत्ते और सरसों की खली दुधारू पशुओं को खाने के लिए प्रयोग की जाती हैं। सरसों के बीज में ३० से ४८ प्रतिशत तेल होता है। सरसों की मांग में इस साल तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे घरेलू बाजार के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी सरसों की मांग बढ़ी है। वहीं, केंद्रीय सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी बढ़ा दिया है। आज हम  इस पोस्ट में सरसों की खेती से जुड़े सभी  मुद्दों  विस्तार से बात करेंगे ।

यदि हम सही फसल उत्पादन चाहते हैं तो सरसों की खेती करने से पहले कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए:

1. सरसों की बुवाई करने का समय

रबी की फसल होने के कारण मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तक जलवायु सरसों की बुवाई करने का अति उत्तम समय है, जो भारत की प्रमुख तिलहन फसल में से एक है। 15-25 डिगी तापमान सरसों का अच्छा उत्पादन देता है।

2. उपयुक्त मिट्टी:

सरसों की खेती, किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन सरसों की अच्छी उपज पाने के लिए समतल और अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी भुरभुरी मिट्टी सबसे अच्छी होती है, हालांकि यह बंजर और लवणीय नहीं होना चाहिए।

3. सरसों बोने का तरीका
सरसों की खेती करने के लिए सबसे पहले खेत को मिट्टी पलटने वाले हल या ट्रैक्टर के द्वारा कल्टीवेटर से जुताई की जानी चाहिए । इसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर से दो से तीन जुताई करना चाहिए। इसकी जुताई करने के बाद खेत को समतल करने के लिए पाटा लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। पाटा लगाने से सिंचाई में समय और पानी दोनों बचता है।सरसों को कतारों में लगाना चाहिए। कतार से कतार की दूरी 45 सेमी और पौधों से 20 सेमी होनी चाहिए। इसके लिए सीडड्रिल मशीन का उपयोग करना आवश्यक है। बीज को सिंचित क्षेत्र में 5 सेमी की गहराई तक रखा जाता है।

बीजोपचार

1 बीज को बुवाई से पहले 3 से 5 ग्राम फफूंदनाशक दवा (बाबस्टीन वीटावैक्स, कैपटान, थिरम या प्रोवेक्स) दें।

2 कीटो को बचाने के लिए ईमिडाक्लोरपीड 70 डब्लू पी बीज दर से 10 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम उपचरित करें।

3 कीटनाशक उपचार के बाद मे 5 ग्राम एज़ेटोबैक्टर और फॉस्फोरस घोलक जीवाणु खाद प्रति किलो बीजो को उपचारित  करना चाहिए

4.बीज की मात्रा

जिन खेतों में सिंचाई के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं, सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर लगाना चाहिए। सिंचाई के पर्याप्त साधन नहीं होने वाले खेतों में सरसों की बीज की मात्रा भिन्न हो सकती है। बीज की मात्रा फसल की किस्म पर निर्भर करती है। फसल की अवधि अधिक दिनों की होगी तो बीज अधिक लगेगा और कम दिनों की होगी तो बीज कम लगेगा।

5.  सरसों की उन्नत किस्में

सरसों की खेती के लिए उसकी उन्नत किस्मों की जानकारी होना भी आवश्यक है, जिससे अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकें। सरसों की कई तरह की किस्में सिंचित क्षेत्र व असिंचित क्षेत्र के लिए अलग-अलग हैं

1. RH (RH) 30: गेहूं, चना और जौ को सिंचाई वाले और असिंचित क्षेत्रों में बोया जा सकता है।

2. टी 59 (वरूणा): भूमि जहां सिंचाई के साधन नहीं हैं, यह किस्म अच्छी पैदावार देती है। असिंचित क्षेत्रों में 15 से 18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज मिलती है। इसके दाने में 36 प्रतिशत तेल है।

3. बोल्ड पूसा: आशीर्वाद (RK): 25 अक्टूबर से 15 नवंबर तक यह किस्म देर से बोया जा सकता है।

4. NRC HB (NRC HB) 101: ये किस्म पर्याप्त सिंचाई वाले क्षेत्रों में अच्छी पैदावार देती है। ये प्रजाति 20 से

6.  सरसों की फसल में सिंचाई:

सरसों की फसल में पहली सिंचाई २५ से ३० दिन पर करनी चाहिए, और दूसरी सिंचाई फलों में दाने भरने की अवस्था में करनी चाहिए. अगर जाड़े में वर्षा होती है, तो दूसरी सिंचाई नहीं करनी चाहिए, फिर भी अच्छी उपज मिल सकती है। सरसों में फूल आने पर खेत को सिंचाई नहीं करनी चाहिए।

7.  खाद और उर्वरक का प्रयोग:

जिन खेतों में सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं, 6 से 12 टन सड़े हुए गोबर की खाद, 160 से 170 किलोग्राम यूरिया, 250 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 50 किलोग्राम म्यूरेट और पोटाश और 200 किलोग्राम जिप्सम बुवाई से पहले खेत में मिलाना उचित होगा। यूरिया की आधी मात्रा बुवाई के समय और पहली सिंचाई के बाद खेत में डालें। जिन खेतों में सिंचाई के उपयुक्त साधन नहीं हैं, उन्हें वर्षा से पूर्व चार से पांच टन सड़ी हुई गोबर की खाद, 85 से 90 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम एकल सुपर फॉस्फेट, 33 किलोग्राम म्यूरेट और पोटाश देना चाहिए।

8.  खरपतवार नियंत्रण:

सरसों की खेती में बुवाई के 15 से 20 दिन बाद घने पौधों को खेत से निकाल देना चाहिए और उनके बीच 15 सेंटीमीटर की दूरी बनानी चाहिए. खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए, गुड़ाई और निराई को सिंचाई से पहले करना चाहिए। अगर खरपतवार खत्म नहीं होता, तो दूसरी सिंचाई के बाद भी निराई और गुड़ाई करनी चाहिए। रासायनिक तरीके से खरपतवार नियंत्रण करने के लिए, बुवाई के तुरंत बाद दो से तीन दिन के अंदर प्रति हेक्टेयर 600 से 800 लीटर पानी में 3.3 लीटर पेंडीमेथालीन 30 ईसी रसायन छिड़काव करना चाहिए।

 

10. उत्पादन

जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है वहां इसकी पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है तथा जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हैं वहां 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज प्राप्त हो सकती हैं।

 सरसों का बाज़ार भाव व कमाई

केंद्र सरकार ने इस साल 2023  सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)  5650 रुपये प्रति क्विंटल का भाव तय किया है।  सरसों की बढ़ती मांग और उपलब्धता में कमी के कारण इस बार खुले बाज़ारों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी ज्यादा भाव मिल रहे हैं। खुले बाज़ारों में सरसों 6500 से 9500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है। किसान अपनी सरसों की फसल देश की प्रमुख मंडियों में जहां भाव अधिक हो, वहां अपनी फसल बेच सकते हैं। इसके अलावा सीधे तेल प्रोसेसिंग कंपनियों से संम्पर्क करके सीधे कंपनियों को भी बेचा जा सकता है। वहीं किसान खुले बाज़ार में व्यापारियों को भी अपनी फसल बेच सकते हैं। बता दें कि इस साल सरसों की फसल ने किसानों को अच्छे दाम दिलाए हैं। किसानों को आगे भी सरसों के अच्छे भाव मिलने की उम्मीद है।

 

 

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